कांकस
Author of this article is पी एन बैफलावत |
कांकस, राजस्थान में पाया जाने वाला गोत्र हैं ।
Origin
प्राचीन मत्स्य प्रदेश में देवासी,कांसली,छापोली जो वर्तमान शेखावाटी उदयपुर उदयपुरवाटी जिला झुंझुनू में है |
History
राजा देवसी ने सेवत 282 में दवासी (देवासी) बसाई | राव कांटा से सेवत 1031 में काकिल देव कच्छावा ने देवासी छीना | मेवासी कांगस ने कांसली बसाई उनकी कई पीढ़ियों ने शासन किया | बाद में इस क्षेत्र पर तोमर,चंदेल और चौहानों का अधिकार हो गया | छापोली भी मीनाओ का प्राचीन मेवासा रहा है | जहा से छापोला गौत्र का निकास माना जाता है | इस प्रकार कांसली भी कंकसो का प्राचीन मेवासा रहा है | जब चन्देलो ने इस पर अधिकार कर लिया तब ये लोग एक शाखा मेवात क्षेत्र के गाव जांड वाला शोतर वर्तमान तहसील व जिला फतेहाबाद हरियाणा चले गये एवं एक शाखा गाव बणहेटा तहसील उनियारा जिला टौक में जा बसी | पृष्ठ - 507,520 कर्नल टाड
प्राचीन नगर कांसली का राजस्थान के इतिहास में काफी जिक्र मिलता है | बादशाह अकबर ने शेखा के पौत्र रायसल को मुग़ल सेवा के बदले दरबारी की उपाधि व देवासी तथा कांसली नगरो का अधिकार दिया | ये दोनों नगर चन्देलो के अधिकार में थे | तिरमल राव को भी कांसली मिलने का जिक्र है | 16वी शताब्दी में सीकर के राजा लक्ष्मण सिंह ने कांसली दुर्ग को गिराकर नष्ट कर दिया | उक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है की कांसली एक प्राचीन नगर व मेवाशा था | यह क्षेत्र वर्तमान उदयपुरवाटी जिला झुनझुनु के अंतर्गत आता था | उदयपुर वाटी का प्राचीन नाम काईस था जो चार भागो में बटा था और उसके 45 गाव थे |रायसल के पुत्र भोजराज को उदयपुर (उदयपुरवाटी) यानि काईस मिली वही छापोला गढ था | भोजराज के बाद सुजान शिंह शेखावत छापोली गढ़ का सरदार बना | यह जय शिंह का काल था |
कांकस गोत्र के बहिभाटो का श्लोक आपके सामने रखना उचित होगा :-
कांगस बसाया कांसली पांचू भडभाई | बस्यो सलावटो ठाठ सु उगम चामुंडा आई ||
चक्र चाल्यो चामुंडा को गाँव सारसोंप बसाई | दिल्ली तख़्त बादस्या कने चौधराई ले बताई ||
कच्छावा राजपूत वंश में नरु से नरुका वंश चला | इनकी जागीर भौजमा बाद (अजमेर) थी | उनके पांचवे पुत्र चन्द्र भान शाही सेवा (शाहजंहा) में गए उसके बदले उनियारा,ककोड़,व बनहेटा प्राप्त हुआ | चन्द्र भान 1641 ई० तक रहे | चन्द्र भान के पास पनवाडा जागीर थी | फिर ककोड़ राजधानी बनी उसके बाद उनियारा राजधानी बनी | दासा नरुका का काल 1450-1500 ई० के आस पास रहा होगा | इनके पुत्र चन्दन दास (चरण दास) के पुत्र सहसा ने भाभड़ा गोत्र के मिनाओ से निवाई पर अधिकार किया एवं सहसा (सहस मल ) के पुत्र राम नरुका ने कांगस गोत्र के मिनाओ से बणहेटा छिना | यह घटना 1466ई० के आस पास की होने की संभावना है | नरुका शाखा के राम का बण हेटा चन्द्र भान को जागीर में मिल गया | बण हेटा उनियारा जागीर के अधीन एक छोटा सा ठिकाना था \ राम के बाद राधो दास उसके बाद राज सिंह और फिर रूप सिंह यहाँ के ठिकानादार रहे है |
Population
Distribution
बणहेटा में सलावटा है वहां कांकसों दुवारा निर्मित एक प्राचीन बावड़ी है जिसमे मीना अपने पूर्वजो को दिवाली के आस पास पाणी देते थे | कहा जाता है की कांगस मुखिया के पास एक चमत्कारिक अविजय खांडा (तलवार) था पानी देते हुए सरदार ने उसे बहार रख दिया नरुका राजपूत ने कांकसों का उसी खांडे से वध कर बण हेटा छीन लिया | कहा जाता है एक गर्भ वती महिला बच गई जिससे कांक़स वंश चला | इसने बड़ा होकर बण हेटा फिर कब्जे में किया फिर उनियारा ठिकाने से टकराव हुवा | फिर खेडा गाँव जो नगर फोर्ट के पास है बसाया | वहां से ये प्राचीन गाँव टोंकरवास बसाया वहां से सांकली,ज्योतिपुरा में बसे | किवदंती है की खेडा से अन्ना और पन्ना दो भाइयो ने वर्तमान ज्योतिपूरा तहसील दुनी जिला टोंक बसाया |
कांकस गोत्र की एक शाखा मेवात के वर्तमान फतेहाबाद और एक बणहेटा तहसील उनियारा टौंक चली गई | फतेहाबाद के गाव–जॉडवाला शोतर में लगभग 1000 आबादी कांकसों की रहती है | दूसरी शाखा ने बणहेटा सलावटा बसाया | यह काल लगभग-1200-1300ई के आस-पास था |
Notable persons
पूर्व चीफ इंजीनियर बीएल कांकस इस गोत्र के मुख्य वयक्ति हैं।